तुम चुप क्यूँ हो? कुछ बोलते नहीं!
किसी बात बुरी पे, तेज़ाब से खौलते नहीं
गर्म जोरी, मुँह जोरी की ज़रूरत है,
तुममे आग जगाने – तुम्हे आग दिखाने आया हूँ
ठन्डे तुम्हारे खून में, मैं कोयला अंगार हूँ,
तुम विश्वास रखो, तुम्हारे विश्वास का आधार हूँ।
मुझे नहीं जानते?
मैं कमज़ोरी का ध्वज नहीं, ना ही आलस्य का विहार हूँ
जो तुम चुप हो, सो मैं तुम्हारे सन्नाटे की पुकार हूँ।
शिथिल किसी विचार में, गहरी एक हूंकार हूँ।
जंग लगी पैजाबो में पुरानी एक झंकार हूँ।
तुम आवाज़ दो उसे देखो कौन नहीं आता है
तुम आवाज़ दो उसे देखो कौन नहीं आता है
उसे लाने मैं शेर पे सवार हूँ
मैं आटे में नमक भी और राई का पहाड़ हूँ।
पलट कर खुद को देखो, ध्यान लगाकर सुनो,
मैं तुम्हारे मन की आवाज़ हूँ।
– तनिष्का