
भूलोटन भूखा और नंगा है
सदियों से
वह मेरी कविता में आया
और घूमता रहा वहां
भूखा और नंगा ही
मैंने अपनी कविता में
ख़ूब नचाया उसे
उसके आने से
ख़ूब दाद मिली
मेरी कविता को
मेरा कवि मन
गदगद हुआ
मगर
भूखा, नंगा भूलोटन
ठेंगा दिखा रहा
मुझे और मेरी कविता को
– ©® सतीश कुमार