
रात की चादर ओढ़े, परवान चढ़ा है इश्क़,
डर को साथ लिए, जो मीलों चला है इश्क़
आसमाँ में उड़ने को – पंख तो फैलाने होंगें,
खुद के या दुनिया के, दिल किसी के तो जलाने होंगें,
रेत पर जो लिखा करते हें,
कभी पक्की स्याही से भी साथ अपना नाम लिखेंगे हम,
किसी दिन, दिन के उजाले में मिलेंगे हम।
जहाँ ये सवाल न हो की क्यों हम सबसे अलग हैँ१
जहाँ ये बवाल न हो की नहीं हमारी पगड़ी- रैनी अलग है।
इन रिवाज़ों के काले बादलो को छोड़,
सतरंगी आसमाँ की तलाश में निकलेंगे हम,
किसी जगह, किसी दिन, दिन के उजाले में मिलेंगे हम।
अपने अंदर हज़ारो बुराइयां लिए उल्टा वो हमसे पूछते हैं,
पापी गिरेबान, झूठे मुँह – वो भगवान् को पूजते हैं।
ये दूसरों की चिता पे रोटी सेकने वाले
कब अपने काम से काम लेंगे१
स्वघोषित – बुद्धिजीवी निर्णायक कब होंगे कम १
खैर! जल्द ही, एक रोज़, एक दिन, दिन के उजाले में मिलेंगे हम।
~ तनिष्का पाटीदार ~