
वो बर्फ सा पिघल गया
जो नीर सा उबल गया
समय सा बदल गया
वो रीत सा जो ढल गया
उसका इंतज़ार मै क्यूँ करूं ?
सूर्य सा जो ढल गया
उजाले को निगल गया
काली स्याह रात में
मुँह छुपा निकल गया
तो सुबह तक –
उसका इंतज़ार में क्यूँ करूं ?
अकेली कहाँ
जो हवा मेरे संग है
याद कुछ प्रसंग है
यार मेरा जोश है
अपना मुझे होश है
मुझे नहीं कोई हया
तो वो, जो साथ छोड़ गया
मनमस्त राहो पर
उसका इंतज़ार में क्यूँ करूं?
~ तनिष्का पाटीदार ~